देश में वन नेशन वन इलेक्शन के लिए बिल को लेकर सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। इसको लेकर एक तरफ मोदी सरकार इसे लागू करवाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है तो दूसरी ओर विपक्ष इसके तहत होने वाले नुकसानों की गिनती कराकर इसे रोकने की हर संभव कोशिश कर रहा है। ऐसे में महाराष्ट्र में मोदी के इस प्लान को इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है।
बड़े स्तर से पहले छोटे स्तर पर यानी की महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव में इसका प्रयोग किए जाने की अटकलें तेज हो रही है। राज्य में सभी स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ करवाने के कयास लग रहे हैं। सरकारी महकमे में भी इसकी चर्चा चल रही है। मतलब महानगर पालिका, जिला परिषद, पंचायत समिति, नगर परिषद के सारे चुनाव एक साथ करवाए जा सकते हैं।
इससे बार-बार लगने वाली आचार संहिता और उससे विकास कार्यों पर आने वाली रुकावट भी दूर होगी।
हालांकि राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर निर्भर है। आशा जताई जा रही है कि 22 जनवरी को इस संदर्भ में सुपर सुनवाई है। इसी दिन सुको अपना निर्णय भी दे सकता है। ओबीसी आरक्षण के मुद्दे के चलते बीते 3 वर्ष से स्थानीय निकाय चुनाव नहीं हो पाए हैं। कुछ गिने-चुने जिला परिषद में पदाधिकारी बचे हैं जिनका कार्यकाल भी 1-2 महीनों में समाप्त हो रहा है।
सभी मनपा में प्रशासक राज चल रहा है। अधिकतर नगर परिषद, नगर पंचायतों की भी ऐसी ही स्थिति है। स्थानीय निकाय संस्थाएं बिना जनप्रतिनिधि के हो गई हैं, चर्चा है कि ओबीसी पर निर्णय आते ही सभी संस्थाओं के चुनाव एक साथ करवाने का विचार सरकार कर रही है। ऐसा हुआ तो एक राज्य एक चुनाव की नीति अपनाने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य हो जाएगा। अगर 22 जनवरी को सुको अपना फैसला दे देता है तो सरकार चुनाव की तैयारी में लग जाएगी। फरवरी-मार्च में परीक्षाएं होती हैं। इसलिए अप्रैल के दूसरे सप्ताह या अंत तक चुनाव की आचार संहिता लगने की संभावना व्यक्त की जा रही है। राजनीतिक पार्टियां तो चुनाव तैयारी में जुट गई हैं। हालांकि अब तक सरकार की ओर से प्रभाग रचना व आरक्षण के संदर्भ में किसी तरह की सूचना प्रशासन को नहीं आई है.